घन पकड़े हुए श्री सी.वी. रमन का कलात्मक चित्रण
चित्र 1: घन पकड़े हुए श्री सी.वी. रमन का कलात्मक चित्रण | अलामी स्टॉक फोटो | अनरिवील्ड फाइल्स

सी.वी. रमन का पूरा नाम सर चंद्रशेखर वेंकट रमन है। सी.वी. रमन भारत के एक महान भौतिक वैज्ञानी थे। जिनको प्रकाश बिखरने के क्षेत्र में इनके कार्य की प्रखरता के लिए जाना जाता है। इन्होंने और इनके छात्र के.एस.कृष्णन ने एक स्पेक्ट्रोग्राफ का उपयोग करके प्रकाश को एक पारदर्शी समाग्रही से पार कराया तो उन्होंने देखा की उस पारदर्शी समाग्रही से जो प्रकाश पार हुआ वह विक्षेपित प्रकाश की तरंग दैधर्य और उसकी आव्रती को बदल देता है। पारदर्शी पदार्थ से पार किये गए प्रकाश को संसोधित प्रकाश प्रकीर्णन कहा गया। इस पर भौतिकी परीक्षण को रमन प्रभाव(Raman effect) या रमन प्रकीर्णन(Raman scattering) कहा गया। सी. वी. रमन को इस खोज के लिए 1930 में भौतिकी के नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सी.वी. रमन एशिया के पहले व्यक्ति थे जिनको नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। आगे इस लेख मे उनके जीवन के बारे जाने।

सी.वी. रमन का जन्म

सी.वी. रमन का जन्म तमिलनाडु के तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सी.वी. रमन एक अकालिक बच्चे थे। इनकी प्राथमिक, माद्यमिक और उच्च माद्यमिक शिक्षा सेंट अलोयसिस एंग्लो इंडियन हाई स्कूल मे हुई थी। इन्होने 11 से 12 वर्ष की उम्र में अपनी शिक्षा प्राप्त कर ली थी। रमन जी ने अपनी भौतिकी में स्नातकोत्तर की शिक्षा प्रोसिडेंसी कॉलेज में शिर्ष स्थान हासिल कर के प्राप्त किया था।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

सी. वी. रमन का जन्म तिरुचिरापल्ली मद्रास (तमिलनाडु) में हुआ था। इनका जन्म एक हिन्दू तमिल ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके माता का नाम पार्वती अम्मल और इनके पिता का नाम चंद्रशेखर रामनाथ अय्यर था। इनके पिता स्थानीय हाइ स्कूल में शिक्षक थे। इनके माता पिता के 8 बच्चे थे। जिनमे ये दूसरे स्थान पर बड़े भाई बहनों में से थे। इन्होंने बताया कि वो अपने मुंह मे तांबे का चम्मच लेकर पैदा हुए थे क्योंकि उनके पिताजी उनके जन्म के समय 10,000रु की शानदार नोकरी कर रहे थे और आंध्र प्रदेश के नरसिम्हा राव कॉलेज में भौतिकी के छेत्र में फैकल्टी के तौर पर नियुक्त किये गए थे। सी.वी. रमन ने वहाँ रहकर ऐंग्लो इंडियन हाई स्कूल में 11 साल की उम्र में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की, और 13 वर्ष की उम्र में कला माद्यम से इंटर मीडिएट की पढ़ाई अन्द्र प्रदेश के माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में पहले स्थान से उत्तीर्ण किया था।

1902 में रमन रहमान मद्रास प्रेसिडेंशियल यूनिवर्सिटी (चेन्नई) में शामिल हो गए जहाँ उनके पिता गणित और भौतिकी पढ़ाने के लिए नियुक्त हुए थे। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से 1904 में अपनी B.A की डिग्री पूरी की। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से अपनी पहली डिग्री प्राप्त की और भौतिकी और अंग्रेजी में स्वर्ण पदक जीता। जब वे 18 साल के थे तब उन्होंने आयताकार छिद्रों के बहुत ही सूक्ष्म कणों और उनके आकार, एसा क्यों होते है तथा उनके विवर्तनिक किनारों के विषय पर अपना पहला वैज्ञानिक पत्र प्रकाशित किया था।

रमन की योग्यताओ को और उनकी भौतिकी शिक्षक के रिशर्ड, निपुणता और क्षमता को देखते हुए, उनको लेवेलिन जोन्स ने इंग्लैंड में शोध जारी रखने के लिए जोर दिया। जोन्स ने कर्नल (सर गेराल्ड) गिफर्ड के साथ रमन के शारीरिक निरीक्षण की व्यवस्था की। रमन का स्वास्थ्य अक्सर खराब रहता था और उन्हें “सारीरिक तौर पर कमजोर” माना जाता था। जब शोध के लिए इंग्लैंड जाने की बात हुई तो उन्होंने ये बताया कि “मैं तपेदिक से मरने वाला हूँ”

करियर

1902 में रमन भारतीय वित्तीय सेवा केंद्र में शामिल हो गए और इसके बाद अपने संगठन को भारत में सबसे अच्छे सेवा संगठनों में से एक बनाया। रमन ने विदेश में अध्ययन करने के लिए सूट का पालन किया और फरवरी 1907 की शुरुआत में परीक्षा बदलने के लिए भारतीय वित्तीय सेवा के लिए आज्ञा प्राप्त की। इसके बाद इन्हें जून सन 1907 में मुख्य सहायक लेखाकार के रूप में कोलकाता भेजा गया।

यहां वे इंडियन एसोसिएशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस से काफी प्रभावित थे, जोकि भारत में स्थापित पहला शोध संस्थान था। जिसकी स्थापना 1876 में भारत मे पहली बार रखी गयी थी। 1907 में नेचर में प्रकाशित रमन का लेख “न्यूटन्स रिंग्स इन पोलराइज्ड लाइट” संस्थान का पहला लेख बना। काम ने IACS को 1909 में एक पत्रिका, बुलेटिन ऑफ इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस, प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया, जिसमें रमन का प्रमुख योगदान था।

1909 में रमन रंगून एक वित्त अधिकारी बनने के लिए ब्रिटिश बर्मा चले गए थे। कुछ महीने बाद उनके पिता की एक गंभीर बीमारी के कारण मृत्यु हो गई जिसके कारण उनको चेन्नई लौटना पड़ा। उनके पिता के देहांत के बाद वे 1 वर्ष वहीं रहे। रंगून में शामिल होने के कुछ समय बाद वे 1910 में भारत के नागोर्नो महाराष्ट्र चले गए। जहाँ 1911 में उन्हें सामान्य लेखाकार के रूप में पदोन्नत किया गया और एक वर्ष सेवा देने के बाद कलकत्ता चले गए।

1915 से कलकत्ता विस्वविद्यालय ने IACS के तहत रमन जी के नेतृत्व में विद्वानों को नियुक्त करना प्रारम्भ कर दिया था। स्व.श्री सुधांगसू कुमार बनर्जी जो भारत के मौसम विभाग के महानिदेशक बने, गणेश प्रसाद के तहत पीएचडी विद्वान बने जो कि सी. वी. रमन के पहले छात्र थे। इन्होंने 1919 तक के काल मे कई छात्रों का मार्गदर्शन किया। 1919 में इनको IACS उच्च पद प्राप्त हुआ। रमन इस संस्था में आने के बाद यह बताए कि ये अवधि उनके जीवन काल का सबसे अच्छा काल था।

रमन पालित कलकत्ता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर चुने गए। इस प्रस्ताव की स्थापना 1913 में दाता सर तारकुना पालित ने की थी। मीटिंग चेकलिस्ट को संबोधित करने के लिए सीनेट को 30 जनवरी 1914 को नियुक्त किया गया था। सन 1914 से पूर्व, रमन ने दूसरे विकल्प के रूप में भौतिकी के पहले पालित प्रोफेसर बने, लेकिन प्रथम विश्व युद्ध के विस्तारवादी होने के कारण पद को स्थगित कर दिया गया। वे 1917 में हमेसा के लिए प्रोफेसर बन गए। जब उन्होंने 1914 में कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित राजा बाजार साइंस कॉलेज में 10 साल की सेवा के बाद अनिच्छा से एक सिविल सेवक के रूप में इस्तीफा दे दिया। प्रोफेसर के रूप में उनका वेतन उस समय का लगभग आधा था। हालांकि, उनके लाभ के लिए एक प्रोफेसर के रूप में उनके शर्तों को रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से दिखाया गया था कि उन्होंने कॉलेज में प्रवेश लिया था।

1943 में, रमन और उनके पूर्व छात्र पंचपक्ष कृष्णमूर्ति ने त्रावणकोर केमिकल एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड नामक एक कंपनी की स्थापना की। 1996 में कंपनी का नाम बदलकर टीसीएम लिमिटेड कर दिया गया और यह भारत में कार्बनिक और अकार्बनिक रसायनों के शुरुआती निर्माताओं में से एक है।1947 में, नई स्वतंत्र भारत सरकार द्वारा रमन को पहले राष्ट्रीय प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था। 1948 में रमन ने बैंगलोर में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की। यहाँ वे निर्देशक भी बने और 1970 तक काम किया।

सी.वी. रमन के शोध

प्रकाश के विवरण पर इनका पहला सोध 1906 में प्रकाशित किया गया था। उन्होंने कलकत्ता के भारतीय वित्त सेवा में महालेखाकार सहायक के रूप में इंडियन असोसिएशन फार द कलटिवशन ऑफ साइन्स से परिचित हुए। जिसकी सहायता से उन्होंने स्वतंत्रत सोध करने की अनुमति प्राप्त की। जिनकी सहायता से उन्होंने प्रकाश की और ध्वनि की सोध में विशेष योगदान दिया। कलकत्ता विस्वविद्यालय मे 1917 में आशुतोष मुखर्जी द्वारा राजाबाजार साइंस कॉलेज में सी.वी. रमन को प्रथम बार भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था।

एक बार जब वे अपनी यूरोप की पहले यात्रा पर जा रहे थे तभी उन्होंने समुद्र को देखा कि समुद्र नीले रंग का है उनके मन में ये जानने की उत्सुकता हुई साथ ही उन्होंने देखा कि हवाई जहाज जब आसमान में चल रहा था तोह उन्होंने धुंए जैसी चीज देखी जोकि हवाई जहाज के आगे चलने पर उसके पिंचे बन रही थी। इन्होंने उपरोक्त घटनाओं के ऊपर सोध किया और 1926 में इंडियन जनरल ऑफ फिजिक्स की नींव रखी। वे 1933 में भारतीय विज्ञान संस्थान के पहले निदेशक बनने के लिए बंगलोर चले गए। 1993 में ही इन्होंने अपने भारतीय विज्ञान अकादमी की स्थापना की इसके बाद 1948 में रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की संस्थान की और अपने जीवन काल तक यही काम करते रहे। जिसके अंतर्गत उन्होंने 28 फरवरी 1928 में रमन प्रभाव(Raman effect) की खोज की इस दिन को भारत इतिहास में राट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। 1954 में उन्हें प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा सर्वोच्च नागरिक पुरुस्कार भारत रत्न से नवाजा गया। बाद में उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान पर प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के विरोध में पदक को तोड़ दिया।

वैज्ञानिक योगदान

1921 में यूरोप की समुद्री यात्रा पर, रमन ने उत्सुकता से ग्लेशियरों और भूमध्य सागर के नीले रंग पर ध्यान दिया। वह नीले रंग का कारण जानने के लिए उत्सुक थे। एक बार जब रमन भारत लौटे, तो उन्होंने पानी से प्रकाश के प्रकीर्णन और बर्फ के पारदर्शी ब्लॉकों के संबंध में कई प्रयोग किए। परिणामों के अनुसार उन्होंने समुद्र-जल और आकाश के नीले रंग की वैज्ञानिक व्याख्या स्थापित की।

एक मनोरम घटना है जिसने प्रेरणा के रूप में कार्य किया रमन प्रभाव की खोज रमन 1927 की दिसंबर की शाम को कुछ काम करने में व्यस्त थे, जब उनके छात्र के.एस. कृष्णन (जो बाद में राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला, नई दिल्ली के निदेशक बने) ने उन्हें खबर दी कि प्रोफेसर कॉम्पटन ने एक्स-रे के बिखरने पर नोबेल पुरस्कार जीता है। इससे रमन के मन में कुछ विचार आए। उन्होंने टिप्पणी की, कि यदि कॉम्पटन प्रभाव एक्स-रे के लिए लागू होता है, तो यह प्रकाश के लिए भी सही होना चाहिए। उन्होंने अपनी राय स्थापित करने के लिए कुछ प्रयोग किए।

रमन ने एक पारे से मोनोक्रोमैटिक प्रकाश का प्रयोग किया जो पारदर्शी सामग्री में प्रवेश कर गया और इसके स्पेक्ट्रम को रिकॉर्ड करने के लिए एक स्पेक्ट्रोग्राफ पर गिरने दिया गया। इस दौरान रमन ने स्पेक्ट्रम में कुछ नई लाइनों का पता लगाया जिन्हें बाद में ‘रमन लाइन्स’ कहा गया। कुछ महीनों के बाद रमन ने 16 मार्च 1928 को बैंगलोर में वैज्ञानिकों की एक बैठक में ‘रमन इफेक्ट’ की अपनी खोज को सामने रखा, जिसके लिए उन्हें 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।

रासायनिक यौगिकों की आणविक संरचना के विश्लेषण में ‘रमन प्रभाव’ को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसकी खोज के एक दशक बाद लगभग 2000 यौगिकों की संरचना का अध्ययन किया गया। लेजर के आविष्कार की बदौलत ‘रमन इफेक्ट’ वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत ही उपयोगी उपकरण साबित हुआ है। रमन की कुछ अन्य रुचियां मानव दृष्टि का शरीर विज्ञान, कोलाइड्स के प्रकाशिकी और विद्युत और चुंबकीय अनिसोट्रॉपी थीं।

सी.वी. रमन 1924 में रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन के फेलो बन गए। एक साल बाद, उन्होंने बैंगलोर के पास रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जहाँ उन्होंने अपनी मृत्यु तक वैज्ञानिक अनुसंधान जारी रखा, उनका इच्छुक वैज्ञानिकों को सच्ची सलाह यह थी कि “वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए स्वतंत्र सोच और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है, उपकरण की नहीं।”

मृत्यु

अक्टूबर 1970 के अंत में रमन को दिल का दौरा पड़ा और वे अपनी प्रयोगशाला में गिर गए। उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसका उपचार किया और बताया किया कि वे 4 घंटे से ज्यादा अधिक जीवित नही रहेंगे। डॉक्टरो ने बताया कि बाकी अधिक जीने के लिए बाकी समय वो अपने अनुयाइयों के बीच रहे। रमन की मृत्यु से दो दिन पहले उनके एक पूर्व छात्र ने बताया कि अकादमी की महत्वपूर्ण पत्रिका इस क्षेत्र में चल रहे विज्ञान की गुणवत्ता को दर्शाती है और क्या विज्ञान इसमें निहित है। उस रात रमन ने अपने बेडरूम लैब में प्रबंधन टीम से मुलाकात की और उन्हें लैब की सफलता के बारे में बताया। उनकी पत्नी उनकी मृत्यु तक बिना जुलूस के एक संक्षिप्त दाह संस्कार करना चाहती थीं। 8 नवंबर 1970 को 82 वर्ष की आयु में प्राकृतिक कारणों से उनका निधन हो गया।


स्त्रोत


तथ्यों की जांच: हम सटीकता और निष्पक्षता के लिए निरंतर प्रयास करते हैं। लेकिन अगर आपको कुछ ऐसा दिखाई देता है जो सही नहीं है, तो कृपया हमसे संपर्क करें

Disclosure: इस लेख में affiliate links और प्रायोजित विज्ञापन हो सकते हैं, अधिक जानकारी के लिए कृपया हमारी गोपनीयता नीति पढ़ें।

अपडेटेड रहें: हमारे WhatsApp चैनल और Telegram चैनल को फॉलो करें।


Editorial Team
Unrevealed Files के संपादकों, परामर्श संपादकों, मध्यस्थों, अनुवादक और सामग्री लेखकों की टीम। वे सभी सामग्रियों का प्रबंधन और संपादन करते हैं।

Leave a reply

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें